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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2709
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

प्रश्न- विशिष्ट बालकों से क्या अभिप्राय है? उनकी क्या विशेषताएँ हैं? पिछड़े बालकों की शिक्षा एवं समायोजन के लिये निर्देशन व परामर्श का एक कार्यक्रम तैयार कीजिए।

उत्तर -

विशिष्ट बालकों का अर्थ

निर्देशन एवं परामर्श के दर्शन के अनुसार सभी बालकों को बिना किसी पक्षपात के अपने व्यक्तित्व के समुचित विकासार्थ यथेष्ट और सुगमतापूर्वक निर्देशन सेवाएँ उपलब्ध होनी चाहिए। व्यक्तिगत विभिन्नताओं के सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक बालक की दक्षताएँ, क्षमताएँ, मानसिक व शारीरिक स्तर आदि पृथक-पृथक होती हैं, कोई तीव्र बुद्धि होता है तो कोई मन्द बुद्धि, कोई लम्बा होता है तो कोई बौना और कोई अन्तर्मुखी होता है तो कोई बहिर्मुखी। व्यक्तिगत विभिन्नताओं के कारण कुछ बालक सामान्य व्यवहार नहीं कर पाते हैं। ये सामान्य तथा औसत बालकों से पृथक सहज ही पहचाने जा सकते हैं। ये बालक ही विशिष्ट बालक कहलाते हैं जो सामान्य तथा औसत से परे हैं, पृथक हैं तथा भिन्न हैं वही विशिष्ट बालक हैं।

जे. टी. हण्ट के अनुसार, - "विशिष्ट बालक वे हैं जो शारीरिक, संवेगात्मक या सामाजिक विशेषताओं में सामान्य बालकों से इतने पृथक हैं कि उनकी क्षमताओं के अधिकतम विकासार्थ शिक्षा- सेवाओं की आवश्यकता पड़ती है।"

सचवार्ट्ज के अनुसार, - "जब हम किसी व्यक्ति का विशिष्ट कहकर वर्णन करते हैं तो हम उसको औसत या सामान्य व्यक्तियों जिनके हम एक या अधिक गुणों से परिचित होते हैं, से पृथक रखते हैं।"

विशिष्ट बालकों की विशेषताएँ

ये इस प्रकार हैं -

(1) विशिष्ट बालक बहुधा शारीरिक रूप से खराब बनावट; जैसे पोलियोग्रस्त, पतले, अत्यधिक लम्बे लम्बे सिर वाले एवं मोटे सिर वाले होते हैं।
(2) शारीरिक रूप से प्रायः अस्वस्थ्य तथा नाजुक होते हैं।
(3) मानसिक बीमारियों से ग्रस्त होते हैं तथा शारीरिक विकास का भी प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है।
(4) साथियों एवं मित्रों के साथ समायोजन करना सर्वथा कठिन होता है।
(5) इनकी बुद्धिलब्धि 0 या 10 से लेकर 140 या इससे भी अधिक के बीच हो सकती है।
(6) ये बालक कक्षा में बतायी बातों को या तो अति तीव्र या फिर बार-बार समझाने पर भी नहीं समझ पाते हैं।
(7) ऐसे बालकों का घर, विद्यालय या समाज में अच्छा समायोजन नहीं हो पाता है।
(8) ऐसे बालक प्रायः अन्तर्मुखी होते हैं।

पिछड़ें बालकों की शिक्षा एवं समायोजन के लिये निर्देशन एवं परामर्श - शिक्षा मनोविज्ञान की दृष्टि से वे बालक पिछड़े हुए कहलाते हैं जो अपनी ही आयु के अन्य साथियों के समान गति से आगे नहीं बढ़ पाते हैं। कुछ बालक ऐसे होते हैं जो किन्हीं कारणों से शिक्षा के क्षेत्र में इतनी उन्नति या गति के साथ आगे नहीं बढ़ पाते हैं जितनी गति से उनके उसी आयु के अन्य साथी आगे बढ़ जाते हैं। यह स्थिति मानसिक मंदता के कारण हो सकती है अथवा किसी अन्य कारण से भी, इसी स्थिति को पिछड़ापन कहते हैं।

सिरिल बर्ट के अनुसार - "वह बालक पिछड़ा बालक है जिसकी निष्पत्ति-लब्धि 85 से कम है।"

सिरिल बर्ट के ही शब्दों में - "पिछड़ा बालक वह है, जो अपने विद्यालय जीवन के मध्य में (अर्थात् लगभग 10 वर्ष की आयु में) अपनी कक्षा से नीचे का कार्य न कर सके, जो उसकी आयु के समान कार्य हैं।"

बुद्धि लब्धि के समान निष्पत्ति-लब्धि का पता निष्पत्ति परीक्षणों के फलांकों से लगाया जाता है। यदि बालक की वास्तविक आयु 15 वर्ष है किन्तु विभिन्न विषयों में उसकी शैक्षिक प्रगति के आधार पर पता लगाया कि उसकी शैक्षिक आयु 12 वर्ष के बराबर है तो उसकी निष्पत्ति-लब्धि निम्नलिखित होगी

                                शैक्षिक आयु
निष्पत्ति-लब्धि =------------------------- x 100
                              वास्तविक आयु
                                12
                          =   ----- x 100 = 80
                                15

सिरिल बर्ट के अनुसार यह बालक पिछड़ा बालक है क्योंकि उसकी निष्पत्ति - लब्धि 85 से कम है। साधारण भाषा में व्याख्या करें तो हम कह सकते हैं कि वह बालक 15 वर्ष का है किन्तु पढ़ने- लिखने में 12 वर्ष के सामान्य बालक की योग्यता रखता है व उसका विद्यालय विषयों में ज्ञान 13 वर्ष के बालक जितना है। वह 15 वर्ष के सामान्य बालकों के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में नहीं चल पा रहा है अतः यह पिछड़ा बालक है।

अनेक अध्ययनों से पता चलता है कि विद्यालय जनसंख्या में करीब 10 प्रतिशत पिछड़े बालक होते हैं। यह प्रतिशत छोटा नहीं है जिसकी अवहेलना की जा सके। प्रत्येक बालक को पिछड़े बालकों का पता लगाकर उनके लिये समुचित शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए। पिछड़ेपन का पता लगाने के लिये निम्न उपाय काम में लाये जा सकते हैं :

(1) निष्पत्ति परीक्षण के परिणाम
(2) बुद्धि परीक्षण के परिणाम
(3) अध्यापकों की सम्मतियाँ
(4) गत कक्षाओं के परीक्षा परिणाम।

उपर्युक्त विधियों के द्वारा बालक के पिछड़ेपन का पता लगाकर उसके लिये निम्नांकित शिक्षा व्यवस्था करनी चाहिए

(1) विशिष्ट कक्षाओं की व्यवस्था - पिछड़े बालकों को यदि सामान्य बालकों के साथ ही पढ़ाया जाए तो उनमें न केवल और अधिक पिछड़ापन आयेगा वरन् उनमें आत्महीनता की भावना भी विकसित हो जायेगी। संयुक्त कक्षाओं में पिछड़े बालकों की कठिनाइयों का व्यक्तिगत रूप से निवारण भी सम्भव नहीं है। अतः इनके लिये पृथक विशेष कक्षाओं की व्यवस्था की जाए। इस कक्षा में वे अपने समान बालकों को पाकर अधिक सुरक्षित अनुभव करेंगे तथा उनकी समस्याओं एवं कठिनाइयों पर अधिक ध्यान दिया जा सकेगा। विशिष्ट कक्षाओं के संचालन के लिये निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिए

(1) विशिष्ट कक्षाओं का आकार छोटा हो।
(2) एक कक्षा में एक ही प्रकार के बालक हों।
(3) इन कक्षाओं को अनुभवी एवं योग्य शिक्षक पढ़ाएँ।
(4) इन कक्षाओं में शिक्षण गति धीमी हो तथा पर्याप्त शिक्षण सामग्री का प्रयोग किया जाए। (5) पृथक-पृथक विषयों के लिये पृथक-पृथक कक्षाएँ हों।
(6) कालांशों की अवधि अधिक बड़ी न हो।

(2) विशिष्ट विद्यालय - कुछ सम्पन्न देशों में पिछड़े बालकों के लिये अलग से विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना की जाती है जिनमें थोड़े-से पिछड़े बालकों को विशिष्ट व्यवस्थाओं के द्वारा शिक्षा प्रदान की जाती है। भारत में आर्थिक कारणों के फलस्वरूप इस प्रकार के विद्यालयों की स्थापना सम्भव नहीं है। अतः यहाँ सात-आठ विद्यालयों के बीच एक विशेष सामान्य विद्यालय में ही पिछड़े बालकों के शिक्षण के लिये व्यवस्था की जा सकती है।

(3) विशिष्ट पाठ्यक्रम - पिछड़े बालकों के लिये विशिष्ट पाठ्यक्रम विकसित किए जाएं। इस प्रकार के बालकों के लिये जो पाठ्यक्रम विकसित किये जाएँ, वे लचीले, आकर्षक तथा क्रिया-प्रधान हों। यदि बालकों में बुद्धि-मन्दता है तो उनके पाठ्यक्रम में हस्तकला को अवश्य सम्मिलित किया जाए। इनके पाठ्यक्रमों में समन्वय के सिद्धान्त का पूरी तरह पालन किया जाए।

(4) विशिष्ट शिक्षण विधियों का प्रयोग - पिछड़े बालक सामान्य शिक्षण विधियों से अधिक लाभान्वित नहीं हो सकते हैं। इनके लिये विशेष शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए। इनके लिये जो शिक्षण विधि अपनायी जाए, उनमें निम्नांकित विशेषताएँ होनी चाहिए -

(i) बालक करके सीखें।
(ii) शिक्षण विधि मन्द गति वाली हो।
(iii) पुनरावृत्ति के अधिकाधिक अवसर प्रदान करें।
(iv) मूर्त के स्थान पर अमूर्त ज्ञान पर बल दें।
(v) सहायक सामग्री के प्रयोग पर बल दें।
(vi) व्यावहारिक ज्ञान पर बल दें।

(5) विशिष्ट अध्यापक - पिछड़े बालकों को पढ़ाने का कार्य निम्नांकित योग्यता व गुण वाले शिक्षकों को दिया जाना चाहिए

(i) शिक्षक पूर्ण प्रशिक्षित तथा योग्य हों।
(ii) शिक्षक निदानात्मक तथा उपचारात्मक कार्य सफलता के साथ सम्पन्न कर सकें।
(iii) जो बालक के साथ स्नेहपूर्ण तथा पक्षपातहीन व्यवहार कर सकें।
(iv) जो बालक की कमजोरियों तथा कठिनाइयों को ठीक से समझकर उनके समाधान हेतु आवश्यक कदम उठा सकें।
(v) उन्हें बाल मनोविज्ञान का व्यावहारिक ज्ञान हो।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निर्देशन का क्या अर्थ है? निर्देशन की प्रमुख विशेषताओं तथा क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- निर्देशन के महत्वपूर्ण उद्देश्य कौन-कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  3. प्रश्न- निर्देशन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- निर्देशन की आवश्यकता से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- "व्यावसायिक निर्देशन शैक्षिक निर्देशन पर प्रभुत्व रखता है।" स्पष्ट कीजिये एवं इस कथन का औचित्य बताइये।
  6. प्रश्न- निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- निर्देशन की आधुनिक प्रवृत्तियाँ क्या हैं?
  8. प्रश्न- निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- निर्देशन के विषय क्षेत्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- निर्देशन तथा शिक्षा में कौन-कौन से मुख्य अन्तर हैं? स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- निर्देशन के कार्य क्या हैं?
  12. प्रश्न- निर्देशन की प्रकृति का उल्लेख कीजिए।
  13. प्रश्न- भारत में निदर्शन की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- "समृद्ध भारत के लिये निर्देशन सेवाओं की अत्यधिक आवश्यकता है।" विभिन्न परिप्रेक्ष्य में इस कथन की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  16. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के मुख्य उद्देश्यों तथा शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? व्यक्तिगत निर्देशन के स्वरूप एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्यक्तिगत निर्देशन के उद्देश्यों या कार्यों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व और आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- छात्रों के व्यावसायिक निर्देशन में विद्यालय क्या भूमिका निभा सकता है?
  23. प्रश्न- "व्यक्तिगत निर्देशन, निर्देशन का मूलाधार है।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  24. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन की शिक्षा के क्षेत्र में क्यों आवश्यकता है? स्पष्ट कीजिए।
  28. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? इसके मुख्य उद्देश्य बताइए।
  29. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के सिद्धान्त क्या है स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयोगिता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- सूचना सेवा से आप क्या समझते हैं? सूचना सेवाओं के उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- सूचना सेवा की कार्य विधि का वर्णन कीजिए।
  33. प्रश्न- नियोजन सेवा से आप क्या समझते हैं? विद्यालय के नियोजन सम्बन्धी कार्यों एवं उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- किसी विद्यालय के निर्देशन सेवा के संगठन की आधारभूत आवश्यकताओं का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- निर्देशन सेवा में विद्यालय स्तर पर कार्यरत प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका का विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अनुवर्ती सेवाओं से आप क्या समझते हैं? इसका क्या प्रयोजन है? अध्ययनरत छात्रों के लिए अनुवर्ती सेवाओं की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- छात्र सूचना या वैयक्तिक अनुसूची सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- सूचना सेवा की आवश्यक सामग्री का उल्लेख कीजिए।
  41. प्रश्न- नियोजन सेवा के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- परामर्श सेवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- सूचना सेवा कितने प्रकार की होती है? विवेचना कीजिए।
  44. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन में आवश्यक सूचनाओं को बताइए।
  45. प्रश्न- व्यक्ति निर्देशन में आवश्यक सूचना को बताइये।
  46. प्रश्न- भारत में व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं के प्रमुख स्रोत क्या हैं?
  47. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में परिवार की क्या भूमिका होती है?
  48. प्रश्न- अनुकूलन सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी आवश्यकता के क्या कारण हैं? स्पष्टतया समझाइये।
  49. प्रश्न- उपचारात्मक सेवाओं से आप क्या समझते हैं?
  50. प्रश्न- अनुवर्ती अध्ययन की समस्याएँ एवं समाधान का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों का अनुवर्ती अध्ययन क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  52. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों के अनुवर्ती अध्ययन की विधियों का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- कृत्य विश्लेषण एवं कृत्य संतोष में क्या सम्बन्ध है?
  54. प्रश्न- विद्यालयों में निर्देशन सेवाओं से आप क्या समझते हैं? विद्यालय निर्देशन- सेवाओं के संगठन के प्रचलित सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  55. प्रश्न- माध्यमिक स्तर पर निर्देशन सेवाओं के संगठन का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा के प्रमुखं कार्य कौन-कौन से हैं? प्राथमिक तथा सैकेण्ड्री स्कूल स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम संगठन के उद्देश्यों तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- विद्यालयी निर्देशन सेवाओं के संगठन की मुख्य संकल्पनाएँ क्या हैं? इसकी आवश्यकता व क्षेत्र क्या है? वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- वर्णन कीजिए कि आप एक शिक्षक के रूप में माध्यमिक स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम को किस प्रकार से संगठित करेंगे?
  59. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा द्वारा किये जाने वाले मुख्य कार्यों की विवेचना कीजिए।
  60. प्रश्न- विद्यालय की निर्देशन संगठन सेवा का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के सफल संगठन के लिए किन-किन मुख्य बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन कार्यक्रमों के सफल संचालन हेतु किन-किन कर्मचारियों की आवश्यकता होती है? स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं के विभिन्न रूपों तथा सिद्धान्तों को संक्षिप्त रूप में बताइए।
  64. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के महत्व की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श के उद्देश्य तथा सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श की आवश्यकता तथा महत्व का वर्णन कीजिए। अथवा छात्र परामर्श की आवश्यकता बताइये।
  68. प्रश्न- परामर्श की प्रक्रिया को समझाइए।
  69. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- परामर्श से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- परामर्श और निर्देशन में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता में कौन-कौन से गुणों का होना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- परामर्श से सम्बन्धित प्रमुख परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- परामर्श के उद्देश्यों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  75. प्रश्न- "एक परामर्शदाता के लिये समूह गतिशीलता का ज्ञान होना आवश्यक है।" स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- धर्म-परामर्श में सह-सम्बन्ध बताइये।
  77. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त-अध्ययन विधि से आप क्या समझते हैं? इसके गुणों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र क्या है? संचित अभिलेख पत्र की विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? इस पत्र की उपयोगिता की व्याख्या कीजिए।
  79. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि से आप क्या समझते हैं? साक्षात्कार प्रविधि के मुख्य तत्त्वों विशेषताओं एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- निर्धारण मापनी या रेटिंग स्केल से आपका क्या अभिप्राय है? इनकी मुख्य विशेषताओं तथा प्रकारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के कितने प्रकार हैं? अनिर्देशित साक्षात्कार प्रविधि के लाभ एवं सीमाएँ बताइए।
  82. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र के निर्माण के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  83. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त अध्ययन प्रविधि की सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  84. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के गुणों का वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि या निर्धारण मापनी को परिभाषित कीजिए।
  86. प्रश्न- साक्षात्कार विधि के मुख्य उपयोगों के बारे में संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट करें।
  88. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन प्रविधि के दोषों पर प्रकाश डालिए।
  89. प्रश्न- प्रश्नावली प्रविधि के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि की कमियों या सीमाओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- संचयी आलेख का अर्थ बताइए।
  92. प्रश्न- परामर्श प्रदान करने की मुख्य प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श की प्रविधियों की मुख्य धारणाओं, सोपानों तथा लाभ एवं कमियों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- परामर्श की प्रमुख प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशन और परामर्श में साक्षात्कार प्रविधि क्यों अधिक उपयोगी सिद्ध हुई है? स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- समन्वित परामर्श से आप क्या समझते हैं? समन्वित परामर्श की मुख्य धारणाओं, लाभों तथा कमियों एवं सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श तथा निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- निर्देशन के साधन क्या हैं?
  97. प्रश्न- निर्देशात्मक परामर्श की प्रमुख विशेषताओं और सीमाओं पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- अनिदेशात्मक परामर्श से क्या तात्पर्य है? अनिदेशात्मक परामर्श की मूल धारणाओं का उल्लेख कीजिए।
  99. प्रश्न- निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  100. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श के मुख्य कार्यों को संक्षेप में बताएँ।
  102. प्रश्न- समन्वित परामर्श मुख्य चरणों या पदों को संक्षिप्त रूप में स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- निर्देशीय परामर्श के मुख्य चरण या सोपान कौन-कौन से हैं? स्पष्ट कीजिए।
  104. प्रश्न- परामर्श के किसी एक उपागम का वर्णन कीजिए।
  105. प्रश्न- परामर्शदाता की विशेषताओं, गुणों तथा व्यावसायिक नीतिशास्त्र का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- परामर्शदाता की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  107. प्रश्न- परामर्शदाता में किस प्रकार का अनुभव होना आवश्यक है, बताइये।
  108. प्रश्न- परामर्शदाता का प्रशिक्षण कार्यक्रम बताइये।
  109. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  110. प्रश्न- परामर्शदाता के व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषकों का उल्लेख कीजिए।
  111. प्रश्न- क्रो एवं क्रो के अनुसार परामर्शदाताओं के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- परामर्शार्थी और परामर्शदाता के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की आवश्यकता बताइए तथा निर्देशन केन्द्रों के उद्देश्य भी बताइए।
  114. प्रश्न- भारत में निर्देशन एवं परामर्श की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  115. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों के कार्य बताइए।
  116. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  117. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार, विशेषताएँ एवं सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- बुद्धि के मापन से आप क्या समझते हैं? बुद्धि परीक्षणों के प्रकार का वर्जन करते हुए बुद्धिलब्धि को कैसे ज्ञात किया जाता है? स्पष्ट कीजिए।
  119. प्रश्न- शिक्षा और निर्देशन में बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- रुचि क्या है? रुचि की महत्वपूर्ण विशेषताओं और प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- अभिवृत्ति का क्या अर्थ है? अभिवृत्ति परीक्षण का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- 'रुचि आविष्कारिकाएँ' क्या मापन करती हैं? कम से कम दो रुचि आविष्कारिकाओं का नाम बताइए।
  123. प्रश्न- बुद्धि कितने प्रकार की होती है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- बुद्धि की मुख्य विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- बुद्धि के अर्थ तथा स्वरूप पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  126. प्रश्न- रुचि का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए।
  127. प्रश्न- रुचियों के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं? संक्षेप में बताइये।
  128. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में रुचि सूचियों के लाभ का वर्णन कीजिए।
  129. प्रश्न- रुचि-सूचियों की कमियां या दोषों का उल्लेख कीजिए।
  130. प्रश्न- अभिवृत्ति के वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
  131. प्रश्न- अभिवृत्ति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  132. प्रश्न- भारतवर्ष में रुचि मापन के कार्यों पर प्रकाश डालिये।.
  133. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका की विवेचना कीजिए।
  134. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  135. प्रश्न- विशिष्ट बालकों से क्या अभिप्राय है? उनकी क्या विशेषताएँ हैं? पिछड़े बालकों की शिक्षा एवं समायोजन के लिये निर्देशन व परामर्श का एक कार्यक्रम तैयार कीजिए।
  136. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श कर्मचारी वर्ग के रूप में प्रधानाचार्य की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  137. प्रश्न- विशिष्ट बालकों को निर्देशन व परामर्श देते समय क्या सावधानियाँ रखी जानी चाहिये? वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- चिकित्सा कर्मचारी किस प्रकार निर्देशन प्रक्रिया में योगदान देते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  139. प्रश्न- निर्देशन प्रक्रिया में शारीरिक शिक्षक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  140. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  141. प्रश्न- प्रधानाचार्य के निर्देशन सम्बन्धी उत्तरदायित्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  142. प्रश्न- निर्देशन में शिक्षक की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  143. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मनोचिकित्सक की भूमिका बताइये।

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